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कविता

गजल

डा. बलराम शुक्ल

अनुक्रम चश्मे तौफ़ीक़ पीछे     आगे

तेरी तस्बीह[1] को जिसने दुरो-मरजाँ[2] से भरा

उसी रब ने मेरे ज़ुन्नार[3] को बख़्शी है सफ़ा[4]

जिसने पुरनूर किया काबे की दीवारों को

उसके ही रंग में रंगीं है बुतों की दुनिया

जिसने भेजे थे कई राहबरे राहे हरम[5]

बनके ख़ुद पीरे मुग़ाँ[6] बादाक़दे[7] में आया

जिसका फ़र्मान है शायस्तगिये तौफ़े हरम[8]

हुक्मे मख़मूरिये ख़म्मार[9] वहीं से आया

चश्मे तौफ़ीक़ जिसे पीरे-मुग़ाँ ने बख़्शी

उसने काबे को इसी बादाक़दे में देखा



[1] जपमाला

[2] मोती और माणिक्य

[3] जनेऊ

[4] स्वच्छता

[5] का,बा

[6] मद्यपों का आचार्य

[7] मधुशाला

[8] का,बे की शिष्टतापूर्वक परिक्रमा

[9] मधुशाला की मस्ती का हुक्म


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