ज़िंदा है अभी
	शरीर के भीतर
	एक और शरीर
	जो रोकता है
	टोकता है
	
	कटु-वचन बोलकर
	भर उठता
	ग्लानि से
	
	अपकर्म करके
	करता है
	
	पश्चाताप
	
	पर-दुख-कातरता
	अब भी है
	शेष
	
	मेरे-तेरे का भेद
	नहीं है
	स्वीकार
	
	हालाँकि
	उसका जीवन
	कम है
	निराश मत होओ
	क्योंकि
	मृत्यु-शैय्या पर
	पड़ा रोगी
	अभी मरा नहीं है
	और आशा की डोर
	अभी टूटी नहीं है