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कविता

उस हर जगह

यशस्विनी


उस हर जगह लेकर जाना है तुम्हें
हर तरह की सुंदरता को दिखाना है तुम्हें
जो सत्य है जो सुंदर है जो शिव है
जो शाश्वत है जो दिव्य है
वह प्रेम है
तुम्हारी तरह
जिसे प्रकृति ने बनाया है या कि
मनुष्य ने रचा है
हर पहाड़, उसकी गोद में बहती नदी
और प्रेम की तरह बहते झरने
ताजमहल, कुतुबमीनार, सालारजंग म्‍यूजियम
मंदिर, गिरिजाघर, मस्जिद, गुरुद्वारे
और चलना है समंदर के किनारे भी
लहरें जब हमारे पैरों से लिपटकर
अठखेलियाँ करने की कोशिश करें
और हमें तुमसे
तो शेष सब कुछ निरर्थक हो जाए।

 


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