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कविता

सब कुछ पूर्ण तुमसे

यशस्विनी


चढ़कर पहाड़ों के उस शिखर पर
जहाँ से हम सारे शहर को देखें
हमे कोई नहीं
बर्फ की वादियों में सब कुछ जहाँ सफेद हो
तुम्हारी आभा से
फूलों के रंग, पंखुड़ियाँ
सुगंध, हवा, चाँद, रोशनी
पृथ्वी और ब्रह्मांड के समस्त सौंदर्य
की अजूबी कल्पना और रचना से साक्षात्कार कराना है :
तुम्हारा,
पर कब, कैसे, कहाँ
क्या सच में?
हम देख पाएँगे एक साथ इन सबको
जी पाएँगे इनमें कभी
या मर जाएँगे खाली सा जीवन लिए
तो भी दुख नहीं, कुछ खाली नहीं,
कुछ अधूरा नहीं कुछ अपूर्ण नहीं
सब कुछ तुममें ही है
तुमसे ही है
और हो तो तुम मुझमे ही।

 


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