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कविता

डाकिया

उदय प्रकाश


डाकिया
हाँफता है
धूल झाड़ता है
चाय के लिए मना करता है

डाकिया
अपनी चप्पल
फिर अँगूठे में सँभालकर
फँसाता है

और, मनीआर्डर के रुपये
गिनता है।


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