समुद्र के किनारे
अकेले नारियल के पेड़ की तरह है
एक अकेला आदमी इस शहर में।
समुद्र के ऊपर उड़ती
एक अकेली चिड़िया का कंठ है
एक अकेले आदमी की आवाज
कितनी बड़ी-बड़ी इमारतें हैं दिल्ली में
असंख्य जगमग जहाज
डगमगाते हैं चारों ओर रात भर
कहाँ जा रहे होंगे इनमें बैठे तिजारती
कितने जवाहरात लदे होंगे इन जहाजों में
कितने गुलाम
अपनी पिघलती चर्बी की ऊष्मा में
पतवारों पर थक कर सो गए होंगे।
ओनासिस ! ओनासिस !
यहाँ तुम्हारी नगरी में
फिर से है एक अकेला आदमी।