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कविता

कैदी

उदय प्रकाश


वे तीन थे
और जैसे किसी जेल में थे

भीतर थी एक सँकरी-सी कोठरी
जिसके भीतर सिर्फ उनका ही सँकरा-सा जी

और उनकी ही थोड़ी-सी साँसें थीं

एक संतरी की तरह टहलता था
दूसरा वार्डेन की तरह देता था हिदायतें
कविता के सख्त कायदों के बारे में

तीसरे को
दोनों ऐसे देखते थे
जैसे देखा जाता है कोई कैदी ।


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