एक
बरसे मेघ भरी दोपहर, क्षण भर बूँदें आईं
उमस मिटी धरती की साँसें भीतर तक ठंडाईं
आँखें खोले बीज उमग कर गगन निहारें
क्या बद्दल तक जा पाएँगे पात हमारे?
दो
मैना डर कर फुर्र हो गई, बिजली तड़की
छींके के सपने में खोई पूसी भड़की
कैसी हलचल आसमान ने मचा रखी है
कल-परसों से नहीं किसी ने धूप चखी है
घड़ों-घड़ों पानी औटाओ, मूसलधार गिराओ
लेकिन सब चुपचाप करो, चिड़ियों को नहीं डराओ!
तीन
यह कागज की नाव चली जाए अमरीका
सिखला दे उनको पूरब का तौर-तरीका
एट्म-बम से बिल्कुल भी धौरी बछिया नहिं डरती
न्यूट्रान से मड़र गाँव की मक्खी भी नहिं मरती
गुन्नू ने चोंगी सुलगा कर लट्ठ सँभाला
आ जाए अब रीगन हो या बेगिन साला।