दृश्य- 1
(परदा उठता है। सूत्रधार का प्रवेश)
सूत्रधार : (पूरे मंच का अर्द्धचंद्राकर के घेरे के रूप में चक्कर लगाता हुआ कहता है) काननवन में हँसी-खुशी और धमा-चौकड़ी का माहौल देखकर आस-पास के वनवासी हैरान हो जाते थे। सुबह से रात होने तक उल्लास और आनंद की गूँज चारों और सुनाई देती थी। (मुस्कराते हुए) काननवन में खुशियों का स्कूल जो खुल गया था। स्कूल जाने वालों के व्यवहार में तेजी से बदलाव दिखाई देने लगे थे। सभी अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे थे। यही कारण था कि भालू के स्कूल में पढ़ने वालों का ताँता लगने लगा।
(नेपथ्य की ओर चला जाता है)
दृश्य- 2
( एक पेड़ के नीचे मेंढक, साँप, चूहा, बिल्ली, शेर, बकरी, हाथी, बंदर, तितली, लोमड़ी, सियार, खरगोश, कुत्ता, गिलहरी और हिरन पढ़ रहे हैं। उन्हें भालू पढ़ा रहा है।)
भालू : (कड़क आवाज में) साल भर हो गया है। अब तुम्हारी परीक्षा होगी। तैयार रहिए।
मेंढक : (सिर खुजलाते हुए) परीक्षा ! ये क्या बला है ?
भालू : (पहले हँसता है। फिर चेहरे पर घबराहट के भाव लाते हुए) परीक्षा ही तुम्हें पास-फेल करेगी। मतलब ये कि तुमने साल भर क्या सीखा, कितना सीखा !
खरगोश : (परेशान होते हुए) लेकिन हम सब तो समझ ही रहे हैं कि हम रोज कुछ न कुछ यहाँ नया सीख रहे हैं। तब भला ये परीक्षा की क्या जरूरत ?
भालू : (डाँटते हुए) चुप रहो। मैं पढ़ाता हूँ और तुम पढ़ते हो। मैं सिखाता हूँ और तुम सीखते हो। अब समय आ गया है कि सब जान लें कि तुम में से अव्वल कौन है !
छिपकली : (चौंकते हुए) अव्वल ! ये अव्वल कौन है ?
भालू : (छिपकली को आँखें दिखाते हुए) परीक्षा ही तय करेगी कि तुम सभी में कौन सबसे अधिक होशियार है। साल भर स्कूल में पढ़ाया गया है। सिखाया गया है। समझाया गया है। परीक्षा से तय होगा कि तुम कितने बुद्धिमान बन सके हो। अब घर जाओ और परीक्षा की तैयारी करो। कल तुम्हारी परीक्षा होगी।
(स्कूल की घंटी बजने की ध्वनि के साथ पात्र दाएँ-बाएँ से मंच के पीछे चले जाते हैं। वहीं सूत्रधार प्रवेश करता है।)
सूत्रधार : स्कूल से लौटते हुए सब सोच में पड़ गए। उनके चेहरे चिंता से भर गए। तनाव और भय के कारण वे हँसना-गाना भूल गए। वे एक-दूसरे से बेवजह तुलना करने लगे। निराशा और हताशा से भरा हर कोई एक-दूसरे से दूर-दूर चलने लगा। आज सुबह तक जो नाचते-कूदते स्कूल जा रहे थे, वे स्कूल से लौटते हुए एक-दूसरे को देखकर घबरा रहे थे। परीक्षा ने जैसे उनकी आजादी छीन ली हो। खुशियों की पाठशाला एक झटके में डर की पाठशाला बन गई। हर कोई रात भर सो नहीं सका।
(मंच के बाईं ओर चला जाता है।)
दृश्य- 3
( मंच पर जानवर। सबके चेहरे बुझे-बुझे से। मंच के एक ओर दीवार है। दूसरी ओर एक पेड़ है। एक किनारे पर एक बड़ा पत्थर रखा हुआ है।)
भालू : (मुस्कराते हुए कहता है) परीक्षा यहीं मैदान में होगी। सब तैयार रहें। (दीवार की ओर संकेत करते हुए) इस दीवार पर जो चढ़ेगा। वही अव्वल माना जाएगा।
(सब दीवार की ओर दौड़े। बंदर, गधा और सियार उछलते ही रह गए। छिपकली झट से दीवार पर चढ़ गई।)
चूहा : (उदास होकर) मेरे जैसे इतनी ऊँची दीवार पर कभी नहीं चढ़ पाएँगे।
भालू : (पेड़ की ओर संकेत करते हुए) इस पेड़ पर चढ़ो। (उड़ने वाले पक्षी पलक झपकते ही पेड़ की शाखाओं पर पंख पसारकर बैठ गए। हिरन, मेंढक जैसे जीव-जंतु अपना सा मुँह लेकर खड़े रह गए।)
भालू : (एक दम तेजी से चीखता हुआ) मैदान के चार चक्कर लगाओ। मैं सौ तक गिनती बोलूँगा। गिनती पूरी होने से पहले चार चक्कर जो लगाएगा वही अव्वल माना जाएगा। दौड़ो! (सब दौड़ने लगे। खरगोश , कुत्ता सबसे आगे। कछुआ सबसे पीछे रह जाता है।)
भालू : (तुरंत बोल पड़ता है) मैदान के किनारे बड़ा सा पत्थर पड़ा है। हटाओ उसे। (सबने कोशिश की। पत्थर टस से मस न हुआ। हाथी झूमता हुआ आया और उसने पत्थर को सूँड़ से धकेल दिया।)
मधुमक्खी : (झल्लाते हुए) मैं इस परीक्षा का बहिष्कार करती हूँ। ऐसी पढ़ाई से तो अनपढ़ रह जाना ही अच्छा है। ऐसी पढ़ाई, ऐसा स्कूल और ऐसा शिक्षक मुझे स्वीकार नहीं, जो कक्षा में सहभागिता के बदले गैर बराबरी की भावना विकसित करे। इस पढ़ाई को धिक्कारना ही अच्छा है।
तितली : (जोश में आकर) मैं भी इस परीक्षा का विरोध करती हूँ। (एक-एक कर सब बोलने लगते हैं।)
चूहा : मैं भी।
बंदर : मैं भी।
सब एक साथ : हम सब भी।
( सब भालू की ओर दौड़े। भालू घबरा गया। वह भागकर मंच के पीछे चला गया। सब उसके साथ मंच से बाहर चले जाते हैं। सूत्रधार प्रवेश करता है)
सूत्रधार : सब उसके पीछे भागे। काननवन का स्कूल बंद हो गया। अब सब प्रकृति से सीखने लगे। अपने अनुभवों से सीखने लगे। तभी से आज तक किसी भी जंगल में कोई स्कूल नहीं लगता।
(परदा गिरता है।)