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कहानी

चादर

शेषनाथ पांडेय


शिरीष गिफ्ट सेक्सन से कोई गिफ्ट पसंद करता फिर उसे बिलिंग कराने के लिए काउंटर पर जाता और लौट आता। ऐसा उसने चौथी बार किया है। शिरीष के इस उहापोह की वजह, उसके जेब में पड़े बारह सौ रुपये हैं। वह समझ नहीं पा रहा है कि कम पैसों में क्या गिफ्ट लिया जाय कि माधवी को पसंद भी आ जाय और आज के खर्चे के लिए पैसा भी बच जाएँ।

आज उसकी शादी की चौथी सालगिरह है। चार सालों में वह माधवी के लिए लिए कभी कोई गिफ्ट नहीं ले गया था। हालाँकि माधवी ने ऐसी किसी भी बात को लेकर कभी कोई शिकायत नहीं की थी, फिर भी शिरीष को लगता कि वह भले कुछ नहीं कहती है मगर उसे गिफ्ट दूँगा तो क्या वह खुश नहीं होगी। वह खुद से कहता है - 'माना तुम गिफ्ट-सिफ्ट में विश्वास नहीं करते लेकिन तुम्हें कोई गिफ्ट देगा तो क्या अच्छा नहीं लगेगा?' शिरीष सोचता है - 'अच्छा लगे या न लगे, बुरा तो नहीं ही लगेगा।'

शिरीष ने तय किया कि जैसे भी हो एक गिफ्ट लेना ही होगा। कन्फ्यूजन के भँवर में फँसे आखिर कार उसने तय किया कि कुछ ऐसी चीज ले लेते हैं जो माधवी के साथ घर के काम भी आ जाय। यह सोच कर वह गिफ्ट सेक्सन से निकल कर अन्य सेक्सन में घूमने लगा। तभी उसे खयाल आया कि माधवी चाय और शरबत के सेट के लिए कई दिनों से कह रही थी। घर में शरबत का सेट पुराना हो गया हैं और उस सेट का एक ग्लास भी फूट गया है। वह क्रॉकरी की तरफ बढ़ ही रहा था कि उसकी नजर लेडीज सेक्सन पर गई। वह फिर से उहापोह में पड़ गया कि क्राकरी लूँगा तो माधवी समझ जाएगी कि बहुत चालाकी कर के गिफ्ट दे रहा है। मगर भला वह ऐसा क्यों समझेगी? न भी समझे तो क्या, बीवी को शरबत का सेट गिफ्ट करना सही रहेगा? नहीं ! ऐसा वह नहीं करेगा।

वह सीधे लेडीज सेक्सन में चला गया। लेडीज सेक्सन में घूमते हुए शिरीष को लगा कि वह औरतों की कितनी चीजों से अपरिचित हैं। उसका सर चकराने लगा कि वह उनमें से क्या ले। शिरीष खुद से बतियाता और गिफ्ट के लिए कुछ खास खोजते-खोजते ऐसी जगह पहुँच गया जहाँ वह अचानक से घबरा गया। सामने अंडर गार्मेंट्स की कई डिजाइनें टँगी हुई थी। उसे लगा कि अब यहाँ एक मिनट भी नहीं रुकना चाहिए। एक तो यह इलाहाबाद ऐसा है कि पहचान वाले हर जगह मिल ही जाते। लोग क्या सोचेंगे कि वह बीवी के लिए ये सब खरीदने आया है। उपर से वह सीधे कोर्ट से वकील साहब के ड्रेस में है। वकीलों पर तो लोग ऐसे ही हँसते रहते हैं। नहीं अब इस सेक्सन में वह नहीं रुकेगा! वह तुरंत लेडीज सेक्सन से बाहर निकलने लगा। वह इतनी तेजी में था मानों उसकी कोई मुखबिरी कर रहा है।

जैसे ही गेट के पास आया तो उसके दिमाग में ये बातें आईं कि जो भी हो लेकिन वे अंडर गार्मेंट्स हैं बहुत खूबसूरत। उसे कुछ मजा सा आया। उसके चेहरे पर शैतानी और मुस्कराहट की एक मिश्रित रेखा उभर आई। वह फिर से लेडीज सेक्सन में आया और दूर से ही थोड़ा नजर बचाकर पसंद करने लगा। उसका सर चकराने लगा कि वह उनमें से क्या ले। वह घूम-घूम कर परिचित-अपरिचित चीजों को देखने लगा। उसे बहुत कुछ अच्छा लगता मगर जब उसका प्राइस देखता तो ध्यान अपने जेब में पड़े पैसों पर चला जाता।

बार-बार चीजों को पसंद करने और अपनी जेब को टटोलने से वह परेशान हो गया था। उसके मन में फिर से खयाल आया कि इस खस्ता हाल में गिफ्ट देना सही नहीं होगा। वो देना भी क्या देना है जो रुलाई दिला दे। वह जाना चाह रहा था कि तभी कुछ लड़कियों की टोली उसके पास आ गई। वह शर्मा कर या यूँ कहिए अपनी इज्जत बचाने के लिए कुछ-कुछ पसंद करने लगा। एक सेट पर उसकी नजर ठहर गई। जब हाथ में लेकर उसका प्राइस देखा तो उसके होश उड़ गए। सात सौ रुपये की एक ऐसी चीज? बाप रे! लेकिन वह करे तो क्या करे। उसे अपने पर फिर से गुस्सा आ रहा था कि मॉल से बाहर चल गया था फिर क्यों अंदर चला आया। लड़कियों को भी शायद ऐसा ही कुछ चाहिए था इसलिए वे भी अंडर गार्मेंटस के गैलरी के पास मँडरा रही थीं। शिरीष को न तो वहाँ एक पल रुकना अच्छा लग रहा था और न ही वह खाली हाथ लौटना चाहता था। इसलिए एक हूक के साथ बिलिंग कराने चल दिया।

बिलिंग की लाइन में खड़े होते हुए हर पल खुद से कहता कि जैसे पहले कई गिफ्टों को वापस रख दिया हैं वैसे इसे क्यों नहीं रख देता है। फिर सोचने लगा कि नहीं अब वह वापस करने नहीं जाएगा। वह अपने को इस बात के लिए उकसाता कि माधवी को कुछ तो अच्छा लगेगा ही। चार सालों में कम से कम वह औरत के बारे में इतना तो जान ही चुका हैं कि औरत भले ही मर्दों की भलमनसाहत को जितना पसंद करती हो उसकी शरारत को बहुत ज्यादा पसंद करती हैं। वैसे भी इस डिजाइन किए अंडर गार्मेंट्स में माधवी कितनी हसीन लगेगी! एक दम फिल्मी हिरोइन की तरह! अंडर गार्मेंट्स की खूबसूरती के वजूद को लेकर वह इतराने सा लगा। यह भी तो बात है कि इस गार्मेंट्स में सिर्फ वहीं है जो माधवी को देख सकेगा। एक ऐसा गार्मेंट्स जिसे पहन कर कोई प्रेमिका अपने प्रेमी के सामने बिना शर्म और बिना किसी मौसम के पिघलने, फड़फड़ाने, सूखने और काँपने लगेगी। और यही तो है जो सबसे बाद में देह का साथ छोड़ता है। उसे लगने लगा था कि किसी लड़की के प्रेम में डूबने और उसके बहुत करीब (इतना करीब कि रोएँ अपनी हरकत शुरू कर दें) आने पर अगर देह और आत्मा के खूबसूरत होने के बाद कुछ और खूबसूरती मन पर लहर उठा सकती है तो वह अंडर गार्मेंट्स ही हैं। नहीं इसे अंडर गार्मेंट्स कहना ठीक नहीं होगा इसे तो लवर गार्मेंट्स कहना चाहिए। इतना सोचने के बाद भी उसकी सोच हर पल बदलती रहती थी। पर अब कुछ और सोचने से क्या फायदा। बिलिंग कराने के लिए उसने दे दिया है।

जब बिलिंग करने के बाद कैशियर ने सात सौ रुपये की माँग की तो शिरीष ने बनावटी तरीके से चौंकते हुए कहा कि सात सौ! एक मिनट दीजिए तो। वह फिर से अपने शरारती गिफ्ट के प्राइस को देखा और कैशियर से कहा कि सॉरी मैं कन्फ्यूज हो गया था। मुझे लगा यह सत्तर रुपये का है। आप बिल कैंसिल कर दीजिए। कैशियर ने नाराजगी और झेंप से मिला जुला एक लुक दिया। शिरीष के पास अपने बचाव के लिए कई दलीलें थी लेकिन वह वहाँ से हटना ही बेहतर समझा।

बाहर आते ही उसने लंबी साँस ली और तय किया कि अब गिफ्ट नहीं लेगा। वह चाय की दुकान पर गया और इतमिनान से चाय पीने लगा। मॉल के अंदर गिफ्ट लेने और न लेने के उहापोह से जितना उबला हुआ था चाय की गर्मी उसे राहत दे रही थी। जब थोड़ा रिलैक्स हुआ तो उसे अहसास हुआ कि उसे वह गिफ्ट ले लेना चाहिए था। इस अहसास के आते ही उसे खुद पर झल्लाहट हुई। वह सोचने लगा कि सात सौ रुपया चला जाता तो क्या होता। हो सकता है कल कोई क्लाइंट मिल जाए या सीनियर ने कुछ काम दे दिया तो पैसे आ ही जाते, जैसे आज अचानक से एक मनसौदा तैयार करने का काम मिल गया। यह मौका तो एक साल में एक ही बार न आता है। अब तो जिंदगी में वकालत करने और पैसा बनाने के अलावा बचा ही क्या हैं? माधवी उस गिफ्ट को पाकर जरूर खुश होती। हमेशा से मेरी गंभीरता को लेकर छेड़ती रहती है। इस गिफ्ट के बाद तो मेरे उपर से गंभरीता की ये धुंध थोड़ी तो जरूर ही छँट जाती। और कुछ नहीं हुआ तो जब मैं माधवी को उन गार्मेंट्स में देर तक देखा करूँगा तो कितना अच्छा लगेगा। और तब कितना, जब वह अपनी हरकतों से मुझे खींचना चाहेगी और मैं अपनी साँसें, अपने रोओं को सहजते हुए किसी अनंत की तरफ एक बहकी निगाह से भाव शून्य होने की बहाने में बहता जाऊँगा। एकबारगी उसके मन में सुनामी की तरह खयाल आय कि गिफ्ट ले ही लिया जाय। लेकिन लेडीज सेक्सन, अंडर गार्मेंट, कैशियर, हो सकता हैं वे लड़कियाँ अभी भी कुछ पसंद कर रही होगी। ये सब खयाल आया तो खुद से कहा कि नहीं वह नहीं जाएगा।

मगर गिफ्ट...??? !!!

पता नहीं आज क्यों वह गिफ्ट के चक्कर में ऐसा पड़ गया है। वह एक पल खुद पर गुस्सा करता तो दूसरे ही पल खुद को समझाने लगता। दो साल से वकालत कर रहे हो। एक साल से बीवी को अपने साथ रखे हो। ठीक है पहले जब बेरोजगार थे, कुछ नहीं देते तो चल जाता। अब तो कुछ देना ही चाहिए। यहीं सब सोचते वह चाय का पैसा देकर घर के लिए निकल गया। अभी थोड़ी दूर चला ही था कि उसके सासू माँ का फोन उसके पास आया। वह सुबह से सालगिरह की बधाई देना चाहती थी लेकिन उसका फोन नहीं लग रहा था। सासू माँ को बधाई के बाद उसने शुक्रिया कहा तो सासू माँ अपनी बेटी की देखभाल के लिए चिंता व्यक्त करने लगी। हालाँकि सासू माँ की यह चिंता सनातन थी फिर भी शिरीष को लगा कि वह उनकी बेटी के लिए इस माइलस्टोन डे पर भी कुछ नहीं खरीद पा रहा हैं इसीलिए ऐसा कह रही हैं। फोन कट जाने के बाद वह मॉल की तरफ फिर से देखने लगा और अपने को समझाने लगा। माधवी तुम से कितना प्यार करती है। तुम्हारी छोटी कमाई में कितना खुश होकर घर चलाती हैं, कभी कुछ भी कहती नहीं। जब तब तो वो तुम्हारे लिए भी अपने मायके से मिले पैसों से शर्ट वैगरह खरीद देती हैं। यह कोर्ट के नीचे तुमने धारीदार पैंट पहनी रखी है माधवी का ही तो दिया हुआ है।

शिरीष के लिए इतना सोचना बहुत था। वह फिर से लेडीज सेक्सन में उपस्थित था। वह अपने पुराने शरारती गिफ्ट के बारे में सोच ही रहा था कि तभी एक सेल्स गर्ल सामने आ गई - 'मैं आपकी कुछ हेल्प कर सकती हूँ?' सेल्स गर्ल के मुस्कान वाली हेल्प के सवाल से शिरीष जरूरत से ज्यादा ही घबरा गया। घबराहट में उसने इतना झटके से 'नहीं' कहाँ कि सेल्स गर्ल घबरा गई और मुस्कराते हुए 'ओके सर' कह कर आगे बढ़ गई। शिरीष थोड़ा रिलैक्स तो हुआ लेकिन उसे लगा कि यह लड़की कब से उसे देख रही है। सोच रही होगी कि यह कितना टुच्चा सा आदमी है जो कब से औरतों के चीजों को देखे जा रहा हैं। कुछ देर वहाँ अपने कन्फ्यूजन में जड़ हुआ खड़ा रहा। तब तक वही सेल्स गर्ल चक्कर काटती हुई वापस आई। उसे शायद शिरीष को झटके वाला 'नहीं' अच्छा नहीं लगा था इसलिए अपना सेल्स रूप दिखाते हुए मुखातिब हुई - ' सर एक्चुअली इस सेक्सन में जेंट्स लोग जेनरली कन्फ्यूज हो जाते हैं इसलिए मैंने आप से हेल्प की बात की थी। क्यों आपको कुछ पसंद नहीं आ रहा हैं? शिरीष इस बात पर बुरी तरह चिढ़ गया -

'आप ही पसंद करवा दीजिए।'

'सर मैं तो कह ही रही थी, कहिए क्या लेना है आपको ?'

शिरीष का चिढ़ना उतरने लगा। उसने अनमने से कहा 'एक अच्छा सा गिफ्ट लायक कुछ दे दो। चीप एंड बेस्ट टाइप कुछ।' फिर तो आप इसमें से कुछ ले लीजिए। वह लिपस्टिक की गैलरी दिखाने लगी। वहाँ पर पहले से दो लड़कियाँ मौजूद थी। पहली लड़की ने इशारा किया और दोनों लड़कियाँ लिपस्टिक दिखाने लगी। वह अपने हाथों पर कभी कलर करती तो कभी अपने होठों पर। शिरीष को लिपस्टिक लगाती हुई लड़कियाँ एक शरारत की तरह लग रही थी लेकिन वह उन्हें कायदे से देखे तो देखे कैसे। लड़कियों को ठीक से न देख पाने की कुलबुलाहट ने शिरीष से कहलवा दिया कि सब तो अच्छा ही हैं लेकिन पता नहीं जिसके लिए ले जाना है उसे पसंद आएगा या नहीं। इस पर एक लड़की ने कहा - 'आप बता दीजिए वह कैसी है, आई मीन उनका कलर...' शिरीष इस बात से फिर चिढ़ गया। उसके जी में आया कि कह दे कि तुझसे लाख गुना अच्छी हैं। मगर मुस्कराते हुए उस गोरी लड़की पर डीप कथई कलर की चढ़ी लिपस्टिक देखकर ऐसा कुछ कहने का खयाल दिल से निकाल दिया। उसने दूसरा बहाना बनाते हुए कहा - 'लेकिन इस लिपस्टिक के लिए पाँच सौ रुपये तो बहुत हैं।'

लड़की रुकने वाली नहीं थी - 'नहीं सर, यही तो समझना है। गिफ्ट के लिए जब इतनी महँगी लिपस्टिक ले जाएँगे तो किसी को भी ज्यादा लगेगा। सोचिए जरा इससे दु्गुने-तिगुने कीमत का कोई ड्रेस वैगरह लेंगे तो नॉर्मल ही होगा।'

शिरीष को लड़की की बातें उतनी जँची नहीं क्योंकि उसके दिमाग में अभी भी लवर गार्मेंट्स की हलचल थी, लेकिन अब वह लेडीज सेक्सन में घिर चुका था। लिपस्टिक लेकर बिलिंग कराने गया तो उसको पाँच सौ अभी भी खटक रहा था। इस खटकन की वजह से वह सोचने लगा कि माधवी तो ऐसे ही सुंदर है उसे श्रृंगार-फिंगार की क्या जरूरत। इसे ले जाने से अच्छा अगर मैं अपने निखालिस मुँह से ही कुछ कह दूँ कि तेरे होठ कमल की तरह लाल है। तेरी गाल ये है, वो है। तेरी जुल्फें पहाड़ी बादलों की तरह घनी हैं तो वह कही ज्यादा खुश हो जाएगी। यह खटकन इतना खटक गया कि उसके हाथ से वह लिपस्टिक गिर गया और कलर करने वाला भाग बाहर आ गया। उसने घबराकर लिपस्टिक उठाई और जैसे तैसे उसमें फिट किया। उसके हाथ लिपस्टिक के रंगों से मैरूनी हो गया था लेकिन जेहन पर राख के रंग चढ़ गए थे।

इस टूटे हुए गिफ्ट को वह पाँच सौ देगा? अगर पाँच सौ में ले भी लिया तो माधवी इसे पा कर क्या सोचेगी कि वह गिफ्ट दिया तो, मगर वो भी टूटा हुआ। ऐसा लगेगा जैसे रास्ते में किसी महिला से छेड़खानी करने में कुछ हाथ नहीं लगा तो उसका लिपस्टिक ही झपट लाया। शिरीष ने बहुत लंबी साँस खींच कर अपने सीने में बैठा लिया मानों वह कब से बाहर निकलने के लिए बेचैन हो रही हो। उसके वापस आई साँस ने उसका जिगरा मजबूत किया और वह चुप-चाप अपने गिफ्ट को जहाँ से लिया था वहीं रख दिया। लड़कियाँ क्या हुआ सर, क्या हुआ सर... सर... कहती रही। वह 'घंटा सर' कहते हुए चल दिया। लड़कियाँ थोड़ी झेंप गई मगर वह बड़बड़ाता हुआ कि मॉल में सरेआम लूट होती हैं, पाँच रुपये की चीज को पचास में भी देते तो चल जाता, पाँच सौ में दे रहे हैं। इतना अँधेर थोड़ी मचा है। उसकी साँसें फिर निकल जाने वाली थी और वह फिर से लंबी साँस खींच कर अपने सीने में बैठाया और मॉल के बाहर चला आया।

बाहर आते ही उसने तय किया कि गिफ्ट सिफ्ट की बात अब दिमाग में नहीं रखना हैं। इसे अच्छा होगा कि वह सारे रुपये को माधवी के हाथों में देगा तो कहीं ज्यादा खुश हो जाएगी। गिफ्ट तो वह देता है जिसे अपने प्यार का सबूत देना होता है। वह तो माधवी से ऐसे ही बहुत प्यार करता हैं। वही तो है जिसकी वजह से उसकी छोटी कमाई में कभी कोई निराशा नहीं होती। उसका किराए का घर माधवी के मुस्कराहट से सोलहों घड़ी आबाद रहता हैं। वह सोते हुए भी मुस्कराती रहती है। एक वह है कि नींद में भी चैन से नहीं सोता। सपने में बिना मतलब बड़बड़ाता रहता है और माधवी को घबरा देता है।

शिरीष यही सब सोचता घर के लिए रिक्शा का इंतजार कर रहा था कि उसे फूल और बुके की दुकान दिखाई दिया। अचानक उसके कदम रुकने से लगे। वह रुकना नहीं चाहता था। तभी उसके मोबाइल पर माधवी का मैसेज आया -

'जनाब कहाँ है आज तो घर थोड़ा पहले आ जाते।'

इस मैसेज से माधवी की याद अखर सी गई। उसे लगा कि वह समय से घर न जा कर हर रोज गलती करता आ रहा है। कितने दिनों से बेचारी सब सहती आ रही है। आज मॉल से उस गिफ्ट को ले लेता तो कम से कम वह आज तो जरूर मुझ से खुश होती और मैं अपने लेट होने की वजह भी बता देता कि इसे पसंद करने में देर हो गई। वह थोड़ा खुश हुआ लेकिन मॉल की तरफ देखते ही सारे खयाल दिल से निकल गए। वह फूल के दुकान के पास चला गया। कई सारे फूलों को पसंद कर के एक अच्छा से बुके तैयार करवाया जिसके लिए उसे तीन सौ रुपये देने पड़े। फिर भी वह खुश था। बहुत खुश।

वह बुके को बार बार देखता। उसे लगता उसकी माधवी उसी में बैठी हुई है। वह बुके को निहारता और कभी सामने का रास्ता देखते चला जा रहा था कि तभी सामने से उसके दो दोस्तों मैकबेथ के चुड़ैल की तरह आते हुए दिखाई पड़े। ये दोनों दोस्त उसके साथ ही वकालत करते थे। शिरीष के हाथ में बुके को देख कर एक ने मजा लेते हुए कहाँ कि 'क्यों शिरीष बाबू ये बुके कहाँ से मिल गया आपको। किसी केस का गड़ा मुर्दा तो नहीं उखाड़ लिए?' शिरीष ने थोड़ा झेंपते, थोड़ा झिझकते हुए कहाँ नहीं आज शादी की सालगिरह है...' आगे शिरीष कुछ कह पाता वे दोनो खिलखिला के हँस पड़े और हँसते हुए दोनों ने बधाई दिया। बधाई के बाद एक ने मजा लिया 'तुम बड़े लकी हो यार चार साल हो गया फिर भी जुबली पर जुबली मनाते जा रहे हो।' शिरीष को यह अच्छा नहीं लगा। वह खुद को सँभालते हुए कहा कि यार मुझे देर हो रही है। कल मिलते हैं तो तुम लोगों को रसगुल्ला खिलाऊँगा।' दोनो हँसते हुए हाँ... हाँ... करते चले गए।

उनके जाने के बाद शिरीष को लगा कि बुके को इस तरह खुला नहीं ले जाना चाहिए। वह फिर बुके की दुकान के पास आया और दुकानदार से बुके के लिए बड़ी सी पन्नी की माँग करने लगा। दुकानदार के पास पारदर्शी पन्नी थी। शिरीष ब्लैक कलर की पन्नी की माँग कर रहा था तो दुकानदार ने बोला कि, 'अरे ले जाइए वकील साहब आप तो बिना मतलब सोच रहे है। कोई देखेगा तो क्या कहेगा। यहाँ तो लोग ऐसे ही ले जाते हैं। दस हजार की रोज सेलिंग हैं। लगता है शहर में आप नए है।'

शिरीष को दुकानदार की बातें चुभ गईं। जिस शहर में वह पैदा हुआ है उस पर यह आरोप। दस हजार की रोज की सेलिंग हैं तो यह मुझे क्यों सुना रहा है। मेरे पेशे का स्टैंडर्ड देख कर यह अंदाज लगा लिया है क्या कि मैं महीने भर में मुश्किल से दस बारह हजार कमा लेता हूँ। शिरीष के अंदर अपनी हैसियत को लेकर मलाल हुआ। मगर वह खुद को समझया कि आखिर कर वह वकील है। उसने वकालत को इसलिए नहीं चुना है कि कहीं नौकरी नहीं लग रही है तो कर लिया। वह वकालत करना चाह रहा था इसलिए कर रहा है। एल एल बी में उसकी पोजिशन टॉप टेन में थी। फिर उसने ला में मास्टर की डिग्री ली है, वो भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जिसे पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहा जाता हैं। ठीक है वह अभी अच्छी कमाई नहीं कर पा रहा है। घर में बँटवारे की वजह से उसका अपना कोई घर नहीं है। लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि उसे ऐरे-गैरे वकीलों की तरह देखा जाय।

दुकानदार की ऐसी कोई मंशा नहीं थी। मगर पैसों की तंगी से शिरीष के अंदर जो हीनता बैठी थी वह बाहर आ गई। वह बुके वापस करने के बारे में सोचने लगा। उसे लगा कि अगर वह बुके लौटा देगा तो फूल वाले की कमाई में तीन सौ तो कम पड़ेंगे ही। मगर वह क्या कह के लौटाएगा? उसे एक आइडिया क्लिक हुआ। वह दुकान से हटकर एक गली में चला गया और पाँच मिनट बाद घबराते हुए दुकान पर फिर आया - 'भाई साहब बहुत गड़बड़ हो गया। हम जिसके लिए बुके ले जा रहे थे उसका एक्सिडेंट हो गया है। आप के पास इतने ग्राहक आते हैं, दस हजार की सेलिंग हैं। किसी और को बेच दीजिएगा।' दुकानदार इनकार करना चाह रहा था कि शिरीष ने बात काटते हुए कहा - 'आप मुझे तीन सौ के अलावा कुछ और पैसे दे दीजिए। हॉस्पिटल जाना है। मैं कल कोर्ट आऊँगा तो आप को दे दूँगा। यह लीजिए मेरा विजिटिंग कार्ड। प्लीज।'

दुकानदार के पास कोई जवाब नहीं था। वह बचने के लिए कहा कि, 'देखिए दुकान का मालिक यहाँ नहीं है। आप अपना तीन सौ लीजिए और जल्दी जाइए। इस समय वहाँ पैसों से ज्यादा अपनों की जरूरत होती हैं। शिरीष ने हड़बड़ाते हुए पैसा लिया और निकल आया।

शिरीष घर के लिए रिक्शा लेने के बाद एक विजेता जैसा फील कर रहा था। वकील हैं हम। पैसा नहीं कमा रहे हैं तो क्या मेरी बुद्धि भी मर गई है। चाहूँ तो कल किसी को भी कटघरे में खड़ा कर सकता हूँ। अपनी इस हरकत से वह खुश था और खुद से कह रहा था कि कल को तुम्हें बड़ा वकील बनने से कोई रोक नहीं सकता हैं। फिर उसे खयाल आया कि माधवी को यह इंट्रेस्टिंग किस्सा सुनाएगा तो बहुत खुश होगी। मगर कहीं उसे यह तो नहीं लगेगा कि अपनी वकीली दिखाने में उसका एक्सीडेंट करवा दिया। यह खयाल आते ही वह लेबर चौराहे की दुकानें देखने लगा। उसको फिर से माधवी के लिए कुछ गिफ्ट खरीदने की इच्छा जागने लगी।

इस बार किसी दुकान में जाने से पहले उसने तय किया कि जो भी लेगा उसे वह वापस नहीं करेगा। रिक्शे से उतरा तो सामने चादर की दुकान थी। माधवी चादर बदलने की बात भी कई दिनों से कह रही थी। वह चादर ही गिफ्ट करेगा और मुस्कराते हुए कहेगा कि नई चादर पर हम अपने प्यार का नई इबारत फिर लिखेंगे। ये देखो सच में शिरीष ने मुस्करा दिया और दुकान के अंदर चला गया।

एक अच्छी चादर की तलाश में उसने पूरी दुकान ही छनवा डाली। उसे आठ सौ रुपये की एक चादर पसंद आई और ले लिया। दुकान से जैसे ही निकला माधवी का मैसेज फिर आया। जिसमें कहाँ हो, कब आओगे जैसी बातें के साथ यह भी जुड़ा था कि घर पर मेरी कुछ सहेलियाँ आने वाली हैं आते वक्त थोड़ा स्वीट, नमकीन और... इसके आगे सम टेक्स्ट मिसिंग था।

उसे अपने पर बहुत गुस्सा आया कि उसने माधवी के पहले मैसेज का रिप्लाई क्यों नहीं किया। वह मैसेज पैक से मैसेज टाइप करने को सोचने लगा। लेकिन अभी यह मैसेज अपडेट तो हो पहले। मैसेज के अपडेट होने के इंतजार के साथ उसने यह अनुमान भी लगाया कि आगे और क्या हो सकता है। फिर सोचा कि जो भी होगा, उसके पास बचे चार सौ रुपये में तो नहीं ही हो पाएगा। उसने चादर लौटाने की बात सोची तो उसके कदम आगे-पीछे होने लगे। उसे जल्दी से कुछ तय करना था लेकिन वह किसी भी हाल में चादर लौटाना नहीं चाहता था। वह मॉल और बुके की दुकान वाली घटना से थक चुका था। मगर कुछ तो करना होगा। माधवी की सहेलियाँ आ रही हैं। अब क्या करेगा वह? हुँह... और करने को बचा भी क्या है। आखिर में चादर वापस करने चला गया। दुकान में घुसते ही बोला, 'देखिए मेरे घर में एक्सिडेंट हो गया है। मुझे अभी पैसों की जरूरत हैं। आप चादर रख लीजिए या ऐसा नहीं कर सकते तो मैं एक दो दिन में दे दूँगा। ये लीजिए मेरा विजिटिंग कार्ड। प्लीज।' दुकानदार ने शिरीष के काले कोट को देखा और चादर वापस करना ही बेहतर समझा।

शिरीष ने मिठाई, नमकीन के साथ खाने के लिए ढेर सारी सब्जी लिया जिसमें पनीर और मशरूम भी शामिल था। उसके दोनों हाथ भरे हुए थे और वह इतनी जिला जलालत के बाद मिठाई और सब्जी लेकर बहुत खुश था। तभी उसके मोबाइल पर फिर से माधवी का मैसेज आया। यह कोई नया मैसेज नहीं था। पुराना वाला ही अपडेट हुआ था। जिसमें आगे की बात थी कि 'और हाँ सब्जी मत लाना आज बाहर ही खाने के लिए चलेंगे।'

शिरीष को करेंट से भी खतरनाक झटका लगा। उसे लगा कि पूरा शहर उसकी बेबसी को आँखें फाड़कर देख रहा हैं। उसे इच्छा हुआ कि लेबर चौराहे के बीच अपने हाथ में लिए झोले और पन्नियों के साथ बैठ जाए और चिल्ला कर कह दे कि वह एक अच्छे दिन पर भी अपने प्यारी पत्नी के लिए कुछ अच्छा नहीं कर सकता हैं। पहली बार उसे अपनी थकान में हार की ऐंठन महशूस हुई। वह धीरे-धीरे अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा। कुछ देर चलने के बाद उसके झोलें से एक ऑटो वाला टकरा गया। वह लड़खड़ाया और खुद को सँभालते सँभालते झोले को भी सँभाल लिया। मगर झोला फटने के लिए बेकरार हो रहा था। वह चिल्लाया - अमे यार... झोला से तुमका कउन दुशमनी है। सीधे चढ़ाय दो हमरे उपर। इहे खत्म होय जाए। कल से एक आदमी तुम्हरे रास्ते की भीड़ को कम करेगा।'

अपनी रूमाल से उसने झोले को बाँध कर ठीक किया। अब उसे माधवी पर गुस्सा आ रहा था। वह दनदनाते हुआ घर की तरफ बड़ा रहा था। माधवी को तो कम से कम सोचना चाहिए था कि बाहर ले जाने के लिए मेरे पास पैसे हैं कि नहीं। उपर से अपनी सहेलियों को बुला लिया हैं। इधर मैं इतना सब कुछ खरीद लिया हूँ। ऐसे ही खुद को लताड़ता तो कभी माधवी पर गुस्साता, घर के अंदर दाखिल हुआ।

माधवी और उसकी सहेलियाँ उसका इंतजार कर रही थीं। उसने किसी से कुछ कहा नहीं और सीधे अपने बेड रूम में गया और सारा सामान रख कर लेट गया। माधवी और उसकी सहेलियाँ घबरा गई तो उसने कहा, 'घबराने की बात नहीं है। बस चार-पाँच उल्टियाँ भर हुई है। कोर्ट में मुवक्किल दिन भर उल्टा-पुल्टा खिलाते रहते है, शायद उसी का असर हो। मुझे बस एक ग्लास निंबू पानी दो। आराम करूँगा सब ठीक हो जाएगा।'

बाहर खाने जाने की बात दिल से निकल गई थी। माधवी बहुत देर तक परेशान रही और डॉक्टर के पास चलने की बात कहती रही। शिरीष बस आराम करने दो कह कर बात टालता रहा। गिफ्ट ना लाने की बेचैनी से उसकी करवटें और बढ़ गई थी और उसकी हर करवट से माधवी का घबराना तेज हो गया था। शिरीष अपनी करवटें, अपनी बेबसी रोकना चाह रहा था और इसके लिए उसे यही लगा कि माधवी को भी अपने पास बुला ले। माधवी उसे अपनी बाँहों में लेकर उसके सीने पर हाथ रखकर उसे हल्का हल्का सहला रही थी और कह रही थी कि हमने नहीं सोचा था हमारी सालगिरह ऐसे जाएगी। शिरीष भी कुछ ऐसा कहना चाह रहा था लेकिन चुप रहा और माधवी को अपने पास महसूस करने की कोशिश करने लगा। माधवी की देह से नई साड़ी की महक आ रही थी।

इस महसूसने से उसकी जागती आँखों में सपना चलने लगता है। वह घर में दाखिल होता है। माधवी को बुके देते हुए 'हैपी मैरिज डे माधवी' बोलता है। उसकी लाई हुई पाँच सौ के लिपस्टिक से माधवी के होठ मैरूनी हैं। वह लवर गार्मेंट्स तक पहुँचता है तो देखता है कि ये तो वही सात सौ के लवर गार्मेंट्स हैं जो आज उसने माधवी को गिफ्ट में दिया है। वह माधवी को लवर गार्मेंट्स में देखता है और उसे नींद आ जाती है।

आधी रात में उसकी नींद खुलती है। उसे फिर से सब याद आता है। वह माधवी के लवर गार्मेंट्स तक पहुँचना चाहता है, उसे देखना चाहता है। इस यात्रा की शुरुआत के लिए वह माधवी को निहार रहा है कि तभी माधवी की नींद खुल जाती है। नाइट बल्ब में अपने पति को अपलक देखने से उसे डर लगता है और घबराकर उठ जाती है और लाइट जला कर हाल पूछती है। कमरे में रोशनी भर जाने से शिरीष को कमरे में कुछ नया सा लगता है। टेबल पर नए शरबत और चाय के सेट थे। मेज पर नया मेजपोश था। उन सब पर हाथ की कढ़ाई से फूल बनाए गए थे। मेजपोश पर फोटो फ्रेम नया था। नए शेट को देखकर वह थोड़ा चकित होता है और उसकी नजर थोड़ी झुकती है तो देखता है बेड पर नई चादर और तकिए के खोल नए हैं। शिरीष माधवी को देखते हुए चादर की तरफ देखने लगता है। चादर उसे अपनी तरफ खींच रही थी। वह खींचता हुआ चादर पर फैल गया। औंधे मुँह लेटे हुए चादर को अपने हाथों से वैसे छू रहा था जैसे पहली बार माधवी को छुआ था। उसका दिल चादर को चुंबन से पाटने के लिए चादर की लंबाई माप रहा था। वह खुश था कि लंबाई माप नहीं पा रहा है।


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हिंदी समय में शेषनाथ पांडेय की रचनाएँ