इस तरह
उस तरह
इसे उतराना होगा
इस कागज पर
जंगल और उसकी चुभनेवाली बिच्छू बूटियों
गँठीली झाड़ियों और टहनियों के
उजाड़ से,
इसे उभरना होगा
इस रिक्त स्थान पर
देखे और अनदेखे ब्रह्मांडों के
ब्लैक होलों से,
उल्का के तूफानों और
कलाबाजी खाते ग्रहों से गुजर कर
हाथ को दिखना है
उँगली से इशारा करते हुए
इस तरफ
उस तरफ
पुनर्जीवन
आओ प्राण फूँको
शब्दों में
शब्द पत्थर हो जाते हैं
जब निर्वासित होते हैं
जिन पर कवियों का स्वामित्व नहीं
बेजान और शिथिल पड़े रहते हैं
अलग थलग,
करवट न बदल पाने पर
वे जीवाश्म बन गए हैं
ऐसा नहीं है, कुत्ते...
जो सड़क से उजाड़े गए
अपनी जीवित रहने की प्रवृत्ति से
डगमगाते और लड़खड़ाते हैं
और एक बार फिर, पा लेते हैं
क्षेत्रीय अधिकार
वे जड़ें जमा लेते हैं और
सहृदयों के साथ पुनः जुड़ जाते हैं
इस्तेमाल किए जाते हैं और चलाए जाते हैं
अपने अतीत की
स्मृति की धड़कन से, वे सवारी करते हैं
वर्तमान की जीवंत लहरों पर
उनकी तरह
आओ, काठी कसो
उन अचल शब्दों, मौन चट्टानों
तक पहुँचो
प्रतीक्षा में हैं जो
उन्हें जगाओ
सृजन, जीवन,
कविताओं के
सपनों के संसार में
पशु, मनुष्य और पौधे
सभी जुड़े हैं आपस में
अलग थलग नहीं कोई।