hindisamay head


अ+ अ-

कविता

हितार्थ

गोएथे

अनुवाद - प्रतिभा उपाध्याय


कवियों को नहीं पसंद चुप रहना,
चाहते हैं वे भीड़ दिखाना,
हाँ, होनी चाहिए तारीफ और आलोचना
मानता नहीं कोई गद्य में,
तथापि भरोसा करते हैं हम अक्सर एकांत में,
खयालों में शांत उपवन में।
यही गलत किया मैंने, यही प्रयास किया मैंने,
इसी पीड़ा को भोगा मैंने और इसे जिया मैंने,
यहाँ सिर्फ फूल हैं गुलदस्ते में;
और बुढ़ापा जवानी की तरह,
और अवगुण सद्गुण की तरह,
छोड़ देता है स्वयं इन्हें गीतों में।


End Text   End Text    End Text