अनूठा है कोहरे में भटकना !
	अकेला है हर झाड़ और पत्थर,
	कोई पेड़ नहीं देखता किसी दूसरे को,
	हर कोई अकेला है।
	मित्रों से भरा था मेरा संसार,
	जब रोशन था मेरा जीवन,
	अब जब कोहरा छा रहा है,
	कोई प्रकट नहीं होता।
	सच में, कोई नहीं है समझदार,
	नहीं जानता है अँधेरे को,
	अँधेरा अपरिहार्य और निस्तब्ध है
	यह उसे सबसे अलग करता है।
	अनूठा है कोहरे में भटकना,
	एकाकी होना ही जीवन है,
	नहीं जानता कोई आदमी दूसरे को,
	हर कोई अकेला है।