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कविता

फूल बेचती लड़की

आरसी चौहान


फूल बेचती लड़की
पता नहीं कब फूल की तरह
खिल गई
फूल खरीदने वाले
अब उसे दोहरी नजर से देखते हैं
और पूछते हैं
बहुत देर तक
हर फूल की विशेषता
महसूसते हैं
उसके भीतर तक
सभी फूलों की खूबसूरती
सभी फूलों की महक
सभी फूलों की कोमलता
सिर से पाँव तक
उसके एक. एक अंग की
एक-एक फूल से करते हैं मिलान
अब तो कुछ लोग
उससे कभी-कभी
पूरे फूल की कीमत पूछ लेते हैं
देह की भाषा में
जबकि उसके उदास चेहरे में
किसी फूल के मुरझाने की कल्पना कर
निकालते हैं कई-कई अर्थ
और उसे फूलों की रानी
बनाने की करते हैं घोषणाएँ
काश! वो श्रम को श्रम ही रहने देते।


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