तुम्हारी हँसी के ग्लोब पर लिपटी नशीली हवा से जान जाता हूँ कि तुम हो तो समझ जाता हूँ कि मैं भी अभी जीवित हूँ ढाई अक्षर के खोल में।
हिंदी समय में आरसी चौहान की रचनाएँ