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कविता

विचारों की होली

शरद आलोक


न्यूनतम तापमान, होली में जमता रंग,
पिचकारी कैसे भरूँ, बरफबारी के संग।
इंटरनेट की आड़ में, देख बधाई पत्र,
फागुन भर की याद से, रंग दिखा सर्वत्र।

हिंदी स्कूल नार्वे में, खूब मचा हुडदंग
एक दूजे के गाल में लगा दिया है रंग।
अर्चना की किताब का बहुत चढ़ा गुलाल
लोकार्पण से हुआ ऊँचा हिंदी भाल।

मारीशस के अनथ सुने कपिल कुंडलियाँ,
होली में भाने लगीं हैं मुंबई की गलियाँ।
जीत गए यदि वीरेंद्र शर्मा चुनावी बोली
ब्रिटेन-संसद में खेलें आगामी होली।

बेशक लिबरल की सांसद हैं रूबी धल्ला,
कनाडावासी खेलें होली खुल्लम खुल्ला।
शरद आलोक यहाँ होली में बरफ तापते
अपनी गाड़ी से एक हाथ भर बरफ हटाते।

नहीं झुकाया सर, यूरो डालर के पीछे,
इसी लिए नहीं दिखी कोई पीछे-पीछे।
जब भी भारत जाएँगे एक पेड़ लगाएँगे,
नदी का पानी एक ड्रम साफ करेंगे।

जब करोड़ भारतीय नदिया साफ करेंगे
आगामी होली में नदियों में रंग घोलेंगे।
आपस में मिलकर शिकवे दूर करेंगे,
असमानता की खाईं को तब पुरेंगे।

होली, हमजोली आँख मिचौली खेले,
जैसे नेता भारत की जनता को तौले।
जो भी भेजे मेल-बेमेल ई परियों के
बुरा न मानो होली में छोटी त्रुटियों से।


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