hindisamay head


अ+ अ-

कविता

प्रार्थना

रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति


मैं हाथ जोड़ता हूँ और सिर्फ हाथ जुड़ते हैं
मैं हाथों से आगे कहाँ जा पाता हूँ

मैं सिर झुकाता हूँ और सिर झुक भी जाता है
मैं सिर के साथ क्यों नहीं झुकता हूँ

मैं विनम्र होता हुआ दिखाई देता हूँ
शरीर के अलावा कुछ विनम्र नहीं होता

मैं प्रार्थना करता हूँ देश के हर मंदिर मस्जिद में
मैं झुकता हूँ वहाँ और चल देता हूँ
मैं सब को यहाँ-वहाँ झुकता हुआ देखता हूँ
लेकिन मैं कहाँ झुक पाता हूँ

मैं सम्मान कर रहा हूँ हाथ बाँधकर
मैं कहाँ सम्मान करता हूँ सिर्फ दिखाई देता हूँ
मैंने देख लिया है कि मैं कुछ और हूँ

मैं सबको अच्छी बातें बताता हूँ
लेकिन मैं खुद को कुछ क्यों नहीं बता पाता
मैं क्षमा करता हूँ सबको
लेकिन खुद को क्षमा नहीं कर पाता

मैं प्रार्थना नहीं करता
मैं प्रार्थना करता हुआ दिखाई दे रहा हूँ


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति की रचनाएँ