कुछ ऐसा है जो रह जाता है,
					तुम उसको मत वाणी देना ।
					
					वह छाया है मेरे पावन विश्वासों की,
					वह पूँजी है मेरे गूँगे अभ्यासों की,
					वह सारी रचना का क्रम है,
					वह जीवन का संचित श्रम है,
					बस उतना ही मैं हूँ,
					बस उतना ही मेरा आश्रय है,
					तुम उसको मत वाणी देना ।
					
					वह पीड़ा है जो हमको, तुमको, सबको अपनाती है,
					सच्चाई है-अनजानों का भी हाथ पकड़ चलना सिखलाती है,
					वह यति है-हर गति को नया जन्म देती है,
					आस्था है-रेती में भी नौका खेती है,
					वह टूटे मन का सामर्थ है,
					वह भटकी आत्मा का अर्थ है,
					तुम उसको मत वाणी देना ।
					
					वह मुझसे या मेरे युग से भी ऊपर है,
					वह भावी मानव की थाती है, भू पर है,
					बर्बरता में भी देवत्व की कड़ी है वह,
					इसीलिए ध्वंस और नाश से बड़ी है वह,
					
					अन्तराल है वह-नया सूर्य उगा लेती है,
					नए लोक, नई सृष्टि, नए स्वप्न देती है,
					वह मेरी कृति है
					पर मैं उसकी अनुकृति हूँ,
					तुम उसको मत वाणी देना ।