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कहानी

देवरानी जेठानी

गौरीदत्‍त शर्मा

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स्त्रियों को पढ़ने-पढ़ाने के लिए जितनी पुस्‍तकें लिखी गयी हैं सब अपने-अपने ढंग और रीति से अच्‍छी हैं, परन्‍तु मैंने इस कहानी को नये रंग-ढंग से लिखा है। मुझको निश्‍चय है कि दोनों, स्‍त्री-पुरुष इसको पढ़कर अति प्रसन्‍न होंगे और बहुत लाभ उठायेंगे।

जब मुझको यह निश्‍चय हुआ कि स्‍त्री, स्त्रियों की बोली, और पुरुष, पुरुषों की बोली पसन्‍द करते हैं जो कोई स्‍त्री पुरुषों की बोली, वा पुरुष स्त्रियों की बोली बोलता है उसको नाम धरते हैं। इस कारण मैंने पुस्‍तक में स्त्रियों ही की बोल-चाल और वही शब्‍द जहॉं जैसा आशय है, लिखे हैं और यह वह बोली है जो इस जिले के बनियों के कुटुम्‍ब में स्‍त्री-पुरुष वा लड़के-बाले बोलते-चालते हैं। संस्‍कृत के बहुत शब्‍द और पुस्‍तकों- जैसे इसलिए नहीं लिखे कि न कोई चित से पढ़ता है, और न सुनता है।

इस पुस्‍तक में यह भी दर्शा दिया है कि इस देश के बनिये जन्‍म-मरण विवाहादि में क्‍या-क्‍या करते हैं, पढ़ी और बेपढ़ी स्त्रियों में क्‍या-क्‍या अन्‍तर है, बालकों का पालन और पोषण किस प्रकार होता है, और किस प्रकार होना चाहिए, स्त्रियों का समय किस-किस काम में व्‍यतीत होता है, और क्‍यों कर होना उचित है। बेपढ़ी स्‍त्री जब एक काम को करती है, उसमें क्‍या-क्‍या हानि होती है। पढ़ी हुई जब उसी काम को करती है उससे क्‍या-क्‍या लाभ होता है। स्त्रियों की वह बातें जो आजतक नहीं लिखी गयीं मैंने खोज कर सब लिख दी हैं और इस पुस्‍तक में ठीक-ठीक वही लिखा है जैसा आजकल बनियों के घरों में हो रहा है। बाल बराबर भी अंतर नहीं है।

प्रकट हो कि यह रोचक और मनोहर कहानी श्रीयुत एम.केमसन साहिब, डैरेक्‍टर आफ पब्लिक इन्‍सट्रक्‍शन बहादुर को ऐसी पसन्‍द आयी, मन को भायी और चित्‍त को लुभायी कि शुद्ध करके इसके छपने की आज्ञा दी और दो सौ पुस्‍तक मोल लीं और श्रीमन्‍महाराजाधिराज पश्चिम देशाधिकारी श्रीयुत लेफ्टिनेण्‍ट गवर्नर बहादुर के यहॉं से चिट्ठी नम्‍बर 2672 लिखी हुई 24 जून सन् 1870 के अनुसार, इस पुस्‍तक के कर्त्‍ता पंडित गौरीदत्‍त को 100 रुपये इनाम मिले।।

दया उनकी मुझ पर अधिक वित्‍त से

जो मेरी कहानी पढ़ें चित्‍त से।

रही भूल मुझसे जो इसमें कहीं,

बना अपनी पुस्‍तक में लेबें वहीं।

दया से, कृपा से, क्षमा रीति से,

छिपावें बुरों को भले, प्रीति से।।

- प. गौरीदत्‍त शर्मा


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