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कविता

माइग्रेन
ईमान मर्सल


मैं इस गहरे पुराने माइग्रेन का बयान इस तरह करना चाहती हूँ
कि यह एक सबूत की तरह दिखे
इस बात का
कि मेरे विशाल मस्तिष्क में सारी रासायनिक क्रियाएँ
भली-भाँति चल रही हैं

मैं ऐसे करना चाहती थी शुरुआत :
'मेरी हथेलियाँ इतनी बड़ी नहीं हो पाईं कि मैं अपना सिर थाम सकूँ'

लेकिन मैंने लिखा :
'जाने किस पिस्तौल से सरसराती निकलती है गोली
शांत अँधेरे को चीरती
कैसी तो हड़बड़ी
कोई दरार है
आपस में टकरा गए हैं बम के बेशुमार बेतुके छर्रे

और एक आनंद भी है :
बस, याद-भर कर लेने से कुछ पीड़ादायी जगहें
कैसे ताव में आ जाती हैं'

 


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हिंदी समय में ईमान मर्सल की रचनाएँ