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कविता

खुशी
ईमान मर्सल


मैं उस स्ट्रेचर पर भरोसा करती हूँ
जिसे दो लोग खींच रहे
मरीज के कोमा में इससे कुछ तो रुकावट पड़ती होगी
इस दृश्य को जो भी देख रहे उनकी आँखों की हमदर्दी पर मुझे संदेह है

मैं मछुआरे का सम्मान करती हूँ
क्योंकि एक अकेला वही है जो मछली को समझता है
मारे चिढ़ के उसका तराजू मैं छीन लेती हूँ फिर

मुझमें इतना सब्र नहीं कि मैं समंदर के बारे में सोचती बैठूँ
जबकि मेरी उँगलियाँ पैलेट पर लगे रंगों में डूबी हुई हैं

जिस क्षण मैं जागती हूँ
मेरी आत्मा का रंग काला होता है

पिछली रात के सपनों में से मुझे कुछ भी याद नहीं सिवाय इसके
कि एक इच्छा है कि
उस कड़ी के वस्तुनिष्ठ इतिहास को जान सकूँ
जो असीम आनंद और अंधकार को जोड़ती है
जो जोड़ती है अंधकार और आतंक को
जो जोड़ती है आतंक और जागने पर काली आत्मा का सामना होने को

देखा जाए तो खुशी
भाप से चलने वाले बेलचों में रहती है
जो किसी क्रेन से जुड़े होते हैं
प्यार के लायक तो सिर्फ वही हैं
उनकी जीभ उनसे आगे-आगे चलती है
वे पृथ्वी की स्मृतियों को खोदते हैं पूरी तटस्थता से
उलट-पुलट करते हैं

 


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