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नानी जी के गाँव चलेंगे
हम गरमी की छुट्टी में।
जाने कब से हिरनों जैसा
मन भर रहा कुलाँचें।
हरियाले आँगन में जाकर
मोरों जैसा नाचें।
दौड़ लगाएँ पगडंडी पर
खेलें कूदें मिट्टी में।
चढ़ें भैंस पर राजा जैसे
घूमें बाग-बगीचे।
बकरी भेड़ गधे की सेना
आए पीछे-पीछे।
लगा ठहाके कर लूँ सारी
खुशियाँ अपनी मुट्ठी में
दोना भर-भर के गुड़ खाएँ
पिएँ दही व मट्ठा।
तोड़-तोड़ कर आम रसीले
कर लें खूब इकट्ठा।
बड़ा मजा है खूब रसीली
इमली खट्टी-मिट्ठी में
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