hindisamay head


अ+ अ-

कविता

एक बुरूंश कहीं खिलता है

हरीशचंद्र पांडे


खून को अपना रंग दिया है बुरूंश ने
बुरूंश ने सिखाया है
फेफड़ों में भरपूर हवा भरकर
कैसे हँसा जाता है
कैसे लड़ा जाता है
ऊँचाई की हदों पर
ठंडे मौसम के विरुद्ध
एक बुरूंश कही खिलता है
खबर पूरे जंगल में
आग की तरह फैल जाती है
आ गया है बुरूंश
पेड़ों में अलख जगा रहा है
कोटरों में बीज बो रहा है पराक्रम के
बुरूंश आ गया है
जंगल में एक नया मौसम आ रहा है

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में हरीशचंद्र पांडे की रचनाएँ