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कविता

एक सिरफिरे बूढ़े का बयान

हरीशचंद्र पांडे


उसने कहा -
जाऊँगा

इस उम्र में भी जाऊँगा सिनेमा
सीटी बजाऊँगा गानों पर उछालूँगा पैसा
'बिग बाजार' जाऊँगा माउंट आबू जाऊँगा
नैनीताल जाऊँगा
जब तक सामर्थ्य है
देखूँगा दुनिया की सारी चहल-पहल
इस उम्र में जब ज्यादा ही भजने लगते हैं लोग ईश्वर को
बार-बार जाते हैं मंदिर मस्जिद गिरजे
जाऊँगा... मैं जाऊँगा... जरूर जाऊँगा
पूजा अर्चना के लिए नहीं
जाऊँगा इसलिए कि देखूँगा
कैसे बनाए गए हैं ये गर्भगृह
कैसे ढले हैं कंगूरे, मीनारें और कलश
और ये मकबरे

परलोक जाने के पहले जरूर देखूँगा एक बार
उनकी भव्य बनावटें
वहाँ कहाँ दिखेंगे
मनुष्य के श्रम से बने
ऐसे स्थापत्य...

 


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