hindisamay head


अ+ अ-

कविता

कइसे के खुसिया मनाईं मितवा

अनिल ओझा नीरद


कहऽ, कइसे के खुसिया मनाईं मितवा

कइसे खुसिया मनाईं
मन के का हो समुझाईं
घर में बाटे नाहीं दाना
नाहीं मिले के ठेकाना
का हो बेकतिन के अपना खियाईं मितवा

कबो परेला सुखार
कबो आवेला दहार
चुए ऊपर से पलानी
भितरा घुसि जाला पानी
कहँवा लइकन के अपना सुताईं मितवा

होखे अनजा ना भाई
रोज बढ़े महँगाई
एको पइसा ना पास
नाहीं करजे के आस
कइसे खेत के लगान हम चुकाईं मितवा

रोवे बबुआ के माईं
कइसे तोह के बताईं
तनवा सभके उघार
केहू देला ना उधार
पहिरीं कपड़ा कि छुधवा बुताईं मितवा

लइका रोवे छ-छ पाती
सुनके फाटे मोरी छाती
माँगे, ''लोती दे ले माईं
अब ना भुखिया छहाई''
मन करे इहे फाँसी हम लगाईं मितवा।

कहाँ बाड़े भगवान
का ऊ भइले सयतान
जे गरीबो के सतावे
तनिको दया नाहीं आवे
मिलिते, कहितीं - तू हवऽ हरजाई मितवा।

 

 


End Text   End Text    End Text