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कविता

इंद्र

वीरेन डंगवाल


इंद्र के हाथ लंबे हैं
उसकी उँगलियों में हैं मोटी-मोटी
पन्ने की अँगूठियाँ और मिजराब
बादलों-सा हल्का उसका परिधान है
वह समुद्रों को उठाकर बजाता है सितार की तरह
मंद गर्जन से भरा वह दिगंत-व्यापी स्वर
उफ!
वहाँ पानी है
सातों समुद्रों और निखिल नदियों का पानी है वहाँ
और यहाँ हमारे कंठ स्वरहीन और सूखे हैं।

 


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