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कविता

परंपरा

वीरेन डंगवाल


पहले उस ने हमारी स्मृति पर डंडे बरसाए
और कहा - 'असल में यह तुम्हारी स्मृति है'
फिर उस ने हमारे विवेक को सुन्न किया
और कहा - 'अब जा कर हुए तुम विवेकवान'
फिर उस ने हमारी आँखों पर पट्टी बांधी
और कहा - 'चलो अब उपनिषद पढ़ो'
फिर उस ने अपनी सजी हुई डोंगी हमारे रक्त की
नदी में उतार दी
और कहा - 'अब अपनी तो यही है परंपरा'।

 


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