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कविता

बांदा

वीरेन डंगवाल


मैं रात, मैं चाँद, मैं मोटे काँच
का गिलास
मैं लहर खुद पर टूटती हुई
मैं नवाब का तालाब उम्र तीन सौ साल ।

मैं नींद, मैं अनिद्रा, कुत्ते के रुदन में
फैलता अपना अकेलापन
मैं चाँदनी में चुपचाप रोती एक
बूढ़ी ठठरी भैंस
मैं इस रेस्टहाउस के खाली
पुरानेपन की बास ।
मैं खपड़ैल, मैं खपड़ैल ।
मैं जामा मस्जिद की शाही संगेमरमर मीनार
मैं केदार, मैं केदार, मैं कम बूढ़ा केदार ।

 


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हिंदी समय में वीरेन डंगवाल की रचनाएँ