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1.
गाड़ी खड़ी थी
चल रहा था प्लेटफार्म
गनगनाता बसंत कहीं पास ही में था शायद
उसकी दुहाई देती एक श्यामला हरी धोती में
कटि से झूम कर टिकाए बिक्री से बच रहे संतरों का टोकरा
पैसे गिनती सखियों से उल्लसित बतकही भी करती
वह शकुंतला
चलती चली जाती थी खड़े-खड़े
चलते हुए प्लेटफारम पर
ताकती पल भर
खिड़की पर बैठे मुझको
2.
सुबह कोई गाड़ी होती तो बहुत अच्छा
रात कोई गाड़ी होती तो बहुत अच्छा
चाँद कोई गाड़ी हो तो सबसे अच्छा
सुबह कोई गाड़ी हो तो मैं शाम तक पहुँच जाता
रात कोई गाड़ी हो तो मैं सुबह तक पहुँच जाता
चाँद कोई गाड़ी होती तो मैं उसकी खिड़की पर ठंडे-ठंडे बैठा
देखता अपनी प्यारी पृथ्वी को
कहीं न कहीं तो पहुँच ही जाता
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