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क्या करूँ
कि रात न हो
टीवी का बटन दबाता जाऊँ
देखूँ खून-खराबे या नाच-गानों के रंगीन दृश्य
कि रोऊँ धीमे-धीमे खामोश
जैसे दिन में रोता हूँ
कि सोता रहूँ
जैसे दिन-दिन भर सोता हूँ
कि झगड़ूँ अपने आप से
अपना कान किसी तरह काट लूँ
अपने दाँत से
कि टेलीफोन बजाऊँ
मगर आँय-बाँय-शाँय कोई बात न हो
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