अ+ अ-
|
मैं चुटकी में भर के उठाता हूँ पानी की एक ओर-छोर डोर
नदी से आहिस्ता
अपने सर के भी ऊपर तक
आलिंगन में भर लेता हूँ मैं
सबसे नटखट समुद्री हवा को
अभी-अभी चूम ली हैं मैंने
पाँच उसाँसें रेगिस्तानों की
गुजिश्ता रातों की सत्रह करवटें
ये लो
यह उड़ चली 120 की रफ्तार से
इतनी प्राचीन मोटर कार
यह सब रियाज के दम पर सखी
या सिर्फ रियाज के दम पर नहीं !
|
|