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कविता

जल की दुनिया में भी बहार आती है

वीरेन डंगवाल


जल की दुनिया में भी बहार आती है
मछली की आँखों की पुतली भी हरी हुई जाती है

जब आती हवा हाँकती लेकर काले-काले जलद यूथ
प्राणों को हरा-भरा करती
बेताब बनाती बूढ़े-भारी पेड़ों तक को
धरती के जर्रे-जर्रे को
जीवन के निरुपमेय रस से भरती
अजब संगीत सुनाती है

यह शीतल राग हवा का, यह तो है खास हमारे पूरब का
यह राग पूरबी दुनिया का अनमोल राग
इसकी धुन जिंदा रखती है मेरे जन को
हैं जहाँ कहीं, अनवरत सताए जाते जो

जांगर करते
खटते पिटते
लड़ते-भिड़ते
गाने गाते

संतप्‍त हृदय-पीडित, प्रच्‍छन्‍न क्रोध से भरे
निस्‍सीम प्रेम से भरे, भरे विस्‍तीर्ण त्‍याग
मेरे जन जो यूँ डूबे हैं गहरे पानी में
पर जिनके भीतर लपक रही खामोश आग

यह राग पूरबी की धुन उन सब की कथा सुनाती है
जल की दुनिया में भी बहार आती है
मछली की आँखों की पुतली भी हरी हुई जाती है

 


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