मेरे मुंतजिर थे रात के फैले हुए सियह बाजू स्याह होंठ थरथराते स्याह वक्ष डबडबाता हुआ स्याह पेट और जंघाएँ स्याह मैं नमक की खोज में निकला था रात ने मुझे जा गिराया स्याही के ताल में
हिंदी समय में वीरेन डंगवाल की रचनाएँ