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कविता

सैनिक अनुपस्थिति में छावनी

वीरेन डंगवाल


लाम पर गई है पलटन
बैरकें सूनी पड़ी हैं
निर्भ्रान्‍त और इत्‍मीनान से
सड़क पार कर रही बंदरों की एक डार

एक शैतान शिशु बंदर
चकल्‍लस में बार-बार
अपनी माँ की पीठ पर बैठा जा रहा
डाँट भी खा रहा बार-बार

छावनी एक साथ कितनी निरापद
और कितनी असहाय
अपने सैनिकों के बगैर

 


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