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कविता

सच बोलना

राजेंद्र प्रसाद सिंह


ओ चंदन-वन के
मलयानिल !
सच बोलना, -
सोए थे
नाग सभी,
सहसा तुम
चले तभी ?
वर्ना क्या
शाखों के साथ अभी
तुम्हें भी पड़ता
किरणों में विष घोलना ?
- सच-सच बोलना !

 


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