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लहरों में आग रुपहली,
ओ S S पुरवाई !
एक मौन की धुन से
हार गई शहनाई ।
जामुनी अँधेरे की,
गजरीली बाँहों में,
एक नदी कैद है निगाहों में ।
रूठ नहीं पाती-
इन साँसों पर झुकी हुई परछाई ।
चाँद बिना आसमान
डूब गया धारा में,
लहक भी न उठती
तो हाय ! क्यों न बुझती
अब इन ठंडे शोलों की अंगड़ाई
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