कविता
लोहा मुकेश कुमार
अगर लोहा हो तो साथ रहो आग के तपोगे, गलोगे कभी हँसिया, हथौड़ा या हथियार में ढलोगे जो पड़े रहे कहीं भी तो लगेगी जंग बदल जाएँगे रंग-ढंग कबाड़ कहलाओगे कबाड़ के भाव ही आँके जाओगे।
हिंदी समय में मुकेश कुमार की रचनाएँ