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कविता

किसी का न मिलना

प्रदीप त्रिपाठी


मिलने की खुशी में
किसी का न मिलना
उतरते हुए ट्रेन से
किसी चीज के छूटने के डर जैसा लगता है
इस तरह का मिलना
विचारों का मिलना नहीं
बल्कि
बंद दरवाजे की खोई हुई चाभी के
अचानक मिलने जैसा है
यह मिलना
किसी अदब का मिलना नहीं
बल्कि
गणित के किसी भूले हुए फार्मूले के
अचानक याद आने जैसा है
इस तरह के मिलने की खुशी
किसी के मिलने की खुशी
में न मिलने जैसा है
या
भीड़ में किसी नन्हें बच्चे के
खो जाने जैसा
या
सबका एक साथ मिलना
कोई बड़ा हादसा टल जाने जैसा

 


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