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बाल साहित्य

बिटिया आरती

शादाब आलम


घर में सबकी बड़ी दुलारी
नन्ही बिटिया आरती।

अम्माँ जी का हाथ बँटाती
कभी काम से न घबराती
चौका-बरतन करे, और घर
अँगना रोज बुहारती।

थके खेत से बापू आते
तुरंत खाट पर हैं पड़ जाते
पैर दबाकर बिटिया उनकी
सारी थकन उतारती

बात किसी की नहीं काटती
दिन भर घर में खुशी बाँटती।
आओ दादी कंघी कर दूँ
बिटिया रोज पुकारती।

चश्मा कर दे दादा का गुम
खींच के भागे गैया की दुम
सूरत-सीरत सबमें अच्छी
पर है जरा शरारती।

 


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