hindisamay head


अ+ अ-

कविता

तवा

विनोद दास


यह लौटने का वक्त है

एक औरत इंतजार करती है
चूल्हे के पास रखे तवे के साथ

तवा ठंडा है

मैं जब कोई ठंडा तवा देखता हूँ
काँप उठता हूँ
ठंडे तवे के पास फैली है
उदास खामोशी

इस उदास खामोशी से
मैं निपटना चाहता हूँ
तवे को मैं तपता हुआ देखना चाहता हूँ
लेकिन यह चुनौती देता रहता है
मुझे सुबह और शाम
लौटने का वक्त हो चला है

अभी एक आदमी
कुछ बुदबुदाता आएगा
एक गंदे झोले के साथ
थककर चूर

आग दहकेगी तवा गरम होगा
पकते हुए आटे की गंध
चारों तरफ फैल जाएगी
फिर तवा सो जाएगा
ठंडे चूल्हे के पास
अगले दिन आग में जलने के लिए
बिना किसी पश्चात्ताप

 


End Text   End Text    End Text