वह जब तृप्त हो गया उसने पूछा क्यों देती हो दूध, क्यों सेती हो अंडे मैं क्या करती कुछ सूझा नहीं ऐसे में औचक मैंने गांधी के तीन बंदर का रूप लिया एक साथ जो समय की माँग थी अब वह मक्खियाँ निगल रहा था मैं देख रही थी उसकी स्वार्थ की सिद्धि
हिंदी समय में आभा बोधिसत्व की रचनाएँ