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कविता

तुम

आभा बोधिसत्व


अभी अभी आई है
तुम्हारी आवाज
अभी अभी मैं अचकचा कर पूछ
रही हूँ, किसी ने बुलाया क्या,
क्या? नहीं तो... शब्द उधार
लेना पड़ा यह कहने के लिए बार बार
और याद। मत पूछो। किससे किससे कहूँ कि चाँद,
सूरज, धरती आकाश फिर तुम
तुम्हारी आवाजें बार बार
कहती हैं तुम मेरे हो
मेरे हिम्मतपस्ती से डट कर कहती है
जाने कौन हो तुम धरा पर
कब के कब के अपने
हम लगे माला जपने
तुम तुम तुम
भीड़ में तुम
अपनों में तुम...
उत्सव में तुम

 


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