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कविता

गठरी लोटा जीवन सारा

आभा बोधिसत्व


इस धरती पर

न कोई किसी से बड़ा है न छोटा है

हर मनुष्य केवल और केवल

साँस भरी गठरी है या

जल से भरा लोटा है।


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