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कविता

सिर्फ किसी देवदूत का हाथ

आल्दा मेरीनी

अनुवाद - सरिता शर्मा


सिर्फ किसी देवदूत का हाथ
जो स्वयं में, खुद के प्यार में बेदाग हो,
पेश कर सकता था
मेरे लिए अपनी खुली हथेली
मेरे रुदन को उसमें उलटते हुए।
जिंदा आदमी का हाथ
आज और कल के धागों में बहुत उलझा हुआ है,
जीवन और जीवन के जिंदा जीवाणुओं से भरा पड़ा है!
आदमी का हाथ कभी अपनी शुद्धि नहीं करेगा
उसके सगे भाई के शांत रुदन की ओर से
और इसलिए, बहुत दूर से आया,
अमरत्व और विशालता से पोषित, सिर्फ देवदूत का सफेद हाथ
धीरता से परख सकता है आदमी की स्वीकारोक्तियों को
गहरी नफरत के इशारे में हथेली को हिलाए बिना।


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