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जीवनी

सुब्रह्मण्यम भारती : व्यक्तित्व और कृतित्व

मंगला रामचंद्रन

अनुक्रम

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यही तो वो धरती है जहाँ

सरस बातें करते , एक दूसरे का साथ देते

हमारे माताओं-पिताओं ने

प्रसन्नता से बिताया एक संतुष्ट जीवन

 

यही तो वो भूमि है जहाँ ,

हमारे पुरखे जिए सहस्रों वर्ष

यही है , यही है वो भूमि जहाँ

उनके मन में उठे सहस्रों विचार

और उन्होंने स्पर्श किया

अतिरिक्त व अविश्वसनीय ऊँचाइयों को

मंगलाजी जैसी संवेदनशील लेखिका ने अपने पुरखों की पुकार को सुना तो कोई आश्चर्य नहीं है। अपनी पूरी शिक्षा-दीक्षा मध्य प्रदेश के इंदौर में पूरी कर, अपना जीवन मध्य प्रदेश के ही विभिन्न छोटी-बड़ी जगहों पर बिताने के बाद मंगला रामचंद्रन अपने पैतृक स्थान के लिए एक अजनबी ही है। हाँ, यदाकदा रिश्तेदारी में विवाह आदि के बहाने तमिलनाडु जाना हुआ जो उँगली पर गिने जाने तक सीमित है। पर वो कभी भी अपने पैतृक गाँव और अपनी भाषा को नहीं भूली। भारती ने भी तो अपनी भूमि के लिए ही उपरोक्त कविता की पंक्तियाँ लिखी थी।

आखिरकार जब मंगलाजी को मौका मिला वो अपने पैतृक गाँव कडैयम गईं। ये वही गाँव है जहाँ भारतीजी ने जेल से रिहा होने के बाद कुछ समय वास किया था। कडैयम यात्रा के दौरान प्रसिद्ध 'नित्य कल्याणी अम्मन' मंदिर भी गई। देवी के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए उन्हें... भारतीजी की कविता 'उज्जयिनी नित्य कल्याणी' का स्मरण हो आया।

रामरनदी के दर्शन करते हुए उनकी कल्पना ने भारतीजी को तट पर बैठे हुए कविता रचते देखा। भारतीजी के नाम से संचालित गाँव की पाठशाला ने अब तक मंगलाजी के मन में भारतीजी और उनके लेखन पर कलम चलाने को मजबूर सा कर दिया।

यह एक कड़वा सत्य है कि सन 1982 में कविश्रेष्ठ की सौवें जन्म दिन को मनाने के बाद भी भारतीजी पर बहुत पुस्तकें प्रकाशित नहीं हुई। खास कर प्रांतीय भाषाओं में तो एकदम नहीं। इन हालातों में मंगला रामचंद्रन की यह पुस्तक उनका परिचय और जानकारी पाने में मदद करेगी। जैसा कि जाना जाता है वे मात्र आजादी के कवि नहीं थे, उनके लेखन के ही अनगिनत आयाम हैं। भारतीजी तमिल भाषा के पुनर्जागरण के पितृपुरुष भी हैं तथा महान देशभक्त, समाज सुधारक तथा स्वतंत्र भारत के एक शिल्पी भी।

मंगला रामचंद्रन हिंदी की प्रतिष्ठित लेखिका हैं जिनकी दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। इस महती कार्य के लिए वे एकदम उपयुक्त हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि हिंदी लेखन जगत में इस पुस्तक का ससम्मान स्वागत होगा। साथ ही कविश्रेष्ठ भारतीजी के प्रति जिज्ञासा में वृद्धि करेगा।

भारती जयंती नेलै

11 दिसंबर 2011 एम. श्रीनिवासन

011-गोल्फ मनर अपार्टमेंट्स,

126, नल विंड टनेल रोड,

मुरुगेश पलाया, बेंगलुरु-500017

संक्षिप्त परिचय : एम. श्रीनिवासन

तमिलनाडु के नेलै संभाग के छोटे से गाँव आयकुड़ी में 21 सितंबर 1929 को पैदाइश।

शिक्षा 'सेंट जेवियर कॉलेज, पालयमकोटै तथा सेंट जेवियर कॉलेज, कोलकाता से।

संप्रति - डाइरेक्टर तथा उपाध्यक्ष, ए पी जे कोलकाता। सन 1947 से 1995 तक कोलकाता में रहते हुए 'भारती तमिल संघम' कोलकाता के अध्यक्ष रहे। सन 1982 में कोलकाता में भारती के सौंवी जन्मतिथि पर इनके प्रयास से भारती की प्रतिमा का प्रतिष्ठापन हुआ। इस कार्यक्रम में प. बंगाल के मुख्यमंत्री श्री ज्योति बसु, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री श्री एम.जी. रामचंद्रन भी उपस्थित थे। कोलकाता की एक सड़क का नाम 'कवि भारती सरणी' भी रखा गया।

देशीय हाईस्कूल के अध्यक्ष भी रहे।

एक दर्जन से भी अधिक पुस्तकों के रचयिता श्रीनिवासन लगभग पूरे भारत का ही नहीं विदेश भ्रमण भी कर चुके हैं। अनेक भाषाओं के जानकार हैं तथा इनकी पुस्तकों को पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। इन्हें अनेक सम्मानों से नवाजा गया। तमिल भाषा के प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन अभी भी जारी है।

साक्षात्कार - श्रीमान एम.श्रीनिवासन जी से

मंगला - आपने लंबे समय तक तमिलनाडु के बाहर भारती पर कार्य किया था, भारती और उनकी महानता पर क्या सोच रखते हैं?

 

एम. श्रीनिवासन - भारती स्वतंत्र भारत के अनेक शिल्पियों में से एक थे। उन्होंने अपने गीतों से तमिलजनों को आलस्य और तंद्रा से जगाया। उन्होंने हमारी आँखों को वो दृष्टि दी जिससे अपने ही पतन, गरीबी, अनभिज्ञता और अज्ञानता को देख सके। हमें स्वतंत्रता की राह दिखाकर विदेशी परवशता और बंधन से मुक्ति की युक्ति दिखाई। तमिल को कट्टर पंडिताई से छुड़ाकर वर्तमान रूप में लाए, जो नया और जीवंत है। भारती ही तमिल पुनर्जागरण के पितृपुरुष हैं। उनके समस्त योगदान को समझने के लिए हम राजा जी (स्व. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी) के इस कथन पर गौर करते हैं।

'प्राचीन समय में व्यास और वाल्मीकि ऋषियों ने अपने लेखन से मानव की संस्कृति और सभ्यता की प्रगति में योगदान दिया। वही कार्य भारती ने अपने लेखन से तमिलजनों के लिए किया।'

भारती की कविताओं को जितना भी पढ़ते जाते हैं वो हमें उतना ही अधिक लुभाता जाता है।

मंगला - विज्ञान और तकनीकि की प्रगति के इस युग में आपको भारती कितने प्रासंगिक लगते हैं?

एम. श्रीनिवासन - आपके प्रश्न का उत्तर तो राजाजी के कथन में ही निहित है। यदि व्यास और वाल्मीकि इस युग में प्रासंगिक है तो फिर भारती भी हैं। ये सभी इसलिए प्रासंगिक हैं क्योंकि इनका लेखन जीवन के शाश्वत और बुनियादी मूल्यों को स्थापित करता है। जीवन के आधार 'धर्म' की बातें बताते हुए उसी अनुसार जीने की प्रेरणा देता है।

मंगला - आपके अनुसार अच्छे पद्य के क्या-क्या गुण होना चाहिए? भारती ने कविता को किस तरह परिभाषित किया है?

एम. श्रीनिवासन - भारती के अनुसार अच्छी कविता या गीत में उर्वरता, पारदर्शिता, ऊँची और गहरी सोच के साथ ही सत्यांश होना चाहिए। गुणों के साथ अगर रंग घुल-मिल जाएँ तो कोई हर्ज नहीं पर न मिलें तो ये उसकी विशेषता होगी। अपने एक आलेख में उन्होंने कविश्रेष्ठ कंबन के कथन 'कविताओं में आभा, स्पष्टता तथा शांत चाल होना चाहिए' को न्यायसंगत बताया है। मेरी स्वयं की भी यही धारणा है। पाठक को गहराई तक असर करने वाली कविताओं में इन्हीं सारे गुणों का समावेश होगा।

मंगला - पद्य रचना की कला के बारे में भारती ने कभी कुछ कहा क्या?

एम. श्रीनिवासन - हाँ-हाँ क्यों नहीं, भले ही प्रत्यक्षतः नहीं पर कई बार इस पर टिप्पणी की है। नए विचार और नई सोच को अपनी कविताओं में उतार कर उसे ऊर्जा प्रदान की और जीवंत बना दिया। इस प्रयास और प्रयोग में वो अत्यंत सफल भी हुए।

मंगला - भारती पर पश्चिम का भी प्रभाव पड़ा होगा?

एम. श्रीनिवासन - यथेष्ट प्रभाव पड़ा। एक लंबी दासता के बाद जिस तरह अन्य भारतीय भाषाओं के चिंतन और लेखकों पर पश्चिम की उदारता और स्वतंत्रता की सोच को ऊर्जा मिली। भारती फ्रेंच आधिपत्य के पांडिचेरी में रहे थे जिससे उन्हें फ्रेंच भाषा को सीखने के अलावा उदारता, समानता व भाईचारे की सोच भी प्राप्त हुई। इस सोच का प्रचार उन्होंने अपने गद्य और पद्य दोनों में भरपूर किया। उन्होंने शेक्सपीयर, शैली व अन्य पश्चिमी कवियों के अलावा अमेरीकन कवि 'आजादी के कवि' कहे जाने वाले वॉल्ट व्हिटमेन और फ्रेंच कविगण विक्टर ह्यूगो, दांते व मैज़िनी का भी अध्ययन किया था।

मंगला - भारती के धार्मिक आचार-विचार किस प्रकार के थे?

 

एम. श्रीनिवासन - भारती एक वफादार परंतु उदार हिंदूवादी थे। अपने ब्राह्मणत्व एवं हिंदू होने के लिए माथे पर तिलक लगाकर या जनेऊ पहनकर प्रमाणित करने का यत्न नहीं करते थे। कह सकते हैं कि उनके गीतों में उनका यह आशय स्पष्ट झलकता है।

भागवत, केनोपद, पतंजलि योग सूत्र आदि ग्रंथों पर टीका की है तो वैदिक ईश्वर स्तुति का अनुवाद भी किया है। लगभग हर हिंदू देवी-देवताओं पर गीतों की रचना की है। श्रीकृष्ण पर तो उन्होंने बड़ी संख्या में रचनाएँ लिखी, जिन्हें सम्मिलित रूप से कृष्ण पाटु (गीत) कहा जाता है। इसके अलावा अल्लाह, ईसा आदि पर भी रचनाएँ की हैं। असल में वे दिलों-दिमाग से उदार प्रवृत्ति के थे और एक सच्चे तथा अच्छे धर्म पर विश्वास करते थे। इसके बावजूद धर्म-परिवर्तन के सख्त खिलाफ थे।

मंगला - अंत में पूछना चाहूँगी कि आप समग्र रूप से भारती को किस तरह शेष करना चाहेंगे?

एम. श्रीनिवासन - सार्वभौमिक रूप में एक युगपुरुष की तरह जो धरती पर सतयुग के लिय पथ प्रदर्शक बने।

श्रीमान श्रीनिवासन जैसे विद्वान से मिलने व अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने का ऐसा मौका मैं छोड़ना नहीं चाहती थी। साथ ही उनके उदार और सरल स्वभाव ने मुझे उनसे वार्तालाप करने का अवसर दिया। जिससे मेरी पुस्तक को दिशा मिलती रही और क्रमशः आगे बढ़ते हुए अंततः अपने पाठक के हाथों में पहुँच ही गई। मन ही मन इन विद्वान पितृवत पुरुष का आभार मानती रहती हूँ, जिनके आशीर्वाद से यह कार्य संपन्न हुआ।

मंगला रामचंद्रन


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