न दुर्लभ हैं
	न हैं अनमोल
	मिलते ही नहीं
	इहलोक में, परलोक में
	आँसू... अनूठे प्यार के,
	         आत्मा के
	          अपार-अगाध अति-विस्तार के!
	हृदय के घन-गहनतम तीर्थ से
	इनकी उमड़ती है घटा,
	और फिर...
	जिस क्षण
	उभरती चेहरे पर
	सत्त्व भावों की छटा -
	          हो उठते सजल
	         दोनों नयन के कोर,
	         पोंछ लेता अँचरा का छोर!