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कविता

नहीं

महेन्द्र भटनागर


लाखों लोगों के बीच
अपरिचित अजनबी
भला,
कोई कैसे रहे!


उमड़ती भीड़ में
अकेलेपन का दंश
भला,
कोई कैसे सहे!


असंख्य आवाजों के
शोर में
किसी से अपनी बात
भला,
कोई कैसे कहे!


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हिंदी समय में महेन्द्र भटनागर की रचनाएँ