जीवन-भर
रहा अकेला,
अनदेखा -
सतत उपेक्षित
घोर तिरस्कृत!
जीवन-भर
अपने बलबूते
झंझावातों का रेला
झेला!
जीवन-भर
जस-का-तस
ठहरा रहा झमेला !
जीवन-भर
असह्य दुख-दर्द सहा,
नहीं किसी से
भूल
शब्द एक कहा!
अभिशापों तापों
दहा - दहा!
रिसते घावों को
सहलाने वाला
कोई नहीं मिला -
पल-भर
नहीं थमी
सर-सर
वृष्टि-शिला!
एकाकी
फाँकी धूल
अभावों में -
घर में :
नगरों-गाँवों में!
यहाँ-वहाँ
जानें कहाँ-कहाँ!