दर्द समेटे बैठा हूँ!
	रे, कितना-कितना
	दुख समेटे बैठा हूँ!
	बरसों-बरसों का दुख-दर्द
	              समेटे बैठा हूँ!
	रातों-रातों जागा,
	दिन-दिन भर जागा,
	सारे जीवन जागा!
	तन पर भूरी-भूरी गर्द
	                लपेटे बैठा हूँ!
	दलदल-दलदल
	                पाँव धँसे हैं,
	गर्दन पर, टखनों पर
	           नाग कसे हैं,
	काले-काले जहरीले
	            नाग कसे हैं!
	शैया पर
	आग बिछाए बैठा हूँ!
	धायँ-धायँ!
	दहकाए बैठा हूँ!