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कविता

बहाना

महेन्द्र भटनागर


याद आता है
तुम्हारा रूठना!

मनुहार-सुख
            अनुभूत करने के लिए,
एकरसता-भार से
ऊबे क्षणों में
रंग जीवन का
नवीन अपूर्व
            भरने के लिए!
याद आता है
तुम्हारा रूठना!

जन्म-जन्मांतर पुरानी
प्रीति को
फिर-फिर निखरने के लिए,
इस बहाने
मन-मिलन शुभ दीप
आँगन-द्वार
           धरने के लिए!
याद आता है
तुम्हारा रूठना!
         अपार-अपार भाता है
         तुम्हारा रागमय
         बीते दिनों का रूठना!


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